साक्षर भारत मिशन (SBM) बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार
वयस्कों को साक्षर बनाने के लिए शुरू साक्षर भारत मिशन बिना नोटिस दिये बंद कर दिया गया था। जम्मू-कश्मीर समेत पूरे देश के हजारों युवा बेरोजगार हो गये।
दक्षिण कश्मीर के त्राल क्षेत्र की 38 वर्षीया यासमीना जान ने बड़ी उम्मीदों के साथ 2012 में एक अनुबंध के आधार पर साक्षर भारत मिशन (एसबीएम) कार्यक्रम के तहत काम करना शुरू किया। कश्मीरी भाषा में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी और शिक्षा में स्नातक यासमीना जान जम्मू और कश्मीर के उन 5,000 उच्च शिक्षित विद्यार्थियों में थीं, जिन्हें शिक्षकों के रूप में चुना गया था।
योजना के बुनियादी मानदंडों में से एक बात यह थी कि वह हर दिन, अनपढ़ लोगों की पहचान करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए त्राल के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा करेगी। उनका काम अपने गाँव के एक सरकारी मिडिल स्कूल में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों को पढ़ाना था।
साक्षर भारत मिशन : कभी भी नहीं मिला समय पर भुगतान
लेकिन यासमीना को कभी भी समय पर भुगतान नहीं मिलता था। ऐले यात्रा और अन्य खर्चों के लिए उन्हें अपने माता-पिता पर निर्भर रहना पड़ता था।
2016 में, यासमीना ने एक सरकारी कर्मचारी से शादी कर ली। जान के ससुराल वालों ने शादी से पहले, उसकी नौकरी और शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में पूछा था। संतुष्ट होने के बाद कि उसके हाथ में नौकरी है, उन्होंने उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार किया।
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उसकी शादी के पहले कुछ महीने अच्छे थे, लेकिन जल्द ही, उसके ससुराल वालों का व्यवहार दबंग हो गया। उन्होंने उसे घर पर रहने, नौकरी की बजाय घर का काम करने के लिए मजबूर किया, क्योंकि यह काम उनके अनुसार ‘किसी काम का नहीं’ था। उनके दिन उनके तानों और उनके पति के ‘आक्रामक व्यवहार’ से शुरू होते थे।
साक्षर भारत मिशन से कुछ भी नहीं हासिल हुआ : यास्मीन
यासमीन ने बताया कि “हमें आम तौर पर छह महीने या उससे भी अधिक समय बाद भुगतान किया जाता था।” इतना धैर्य रखने के बाद भी मैंने उस नौकरी से कुछ हासिल नहीं किया। इसने मेरे पति को नाराज कर दिया और वह मेरे या मेरे बच्चे पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते थे।
जान के ससुराल वाले उम्मीद करते थे कि वह खुद का मासिक वेतन कमाये, ताकि वह उन पर “बोझ” न बने। यासमीना के अनुसार, उनके पति ने गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान उन्हें मायके में छोड़ दिया था। उन्होंने कहा, “वह मुझे तलाक देने वाले थे, लेकिन लंबी परेशानी के बाद मेरे माता-पिता ने इस मुद्दे को सुलझाने में मेरी मदद की।”
घरेलू हिंसा के लिए परिवार को नहीं, सरकार को बताती हैं दोषी
हालांकि इससे उनकी समस्याएं खत्म नहीं हुईं। जान कहती हैं कि वह अपने पति से कोई पैसा नहीं लेती है और ससुरालियों से हर दिन घरेलू हिंसा का सामना करती है।
हालाँकि, वह अपने साथ हो रहे अन्याय के लिए “परिवार” को दोषी नहीं मानती है। इसकी बजाय वह सरकार को जिम्मेदार ठहराती हैं। वह मानती हैं कि सरकार के “स्वार्थपरता” ने उनके करियर और इस योजना के तहत काम करने वाले अन्य लोगों को खतरे में डाल दिया है।
साक्षर भारत मिशन (SBM) क्या है?
2009 में पूरे देश में लॉञ्च साक्षर भारत एक केंद्र प्रायोजित देशव्यापी साक्षरता योजना है। यह देश के 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। यह योजना वयस्कों, विशेषकर महिलाओं को साक्षरता प्रदान करने पर केंद्रित है। इस योजना में प्रत्येक पंचायत क्षेत्र में महिला उम्मीदवारों के लिए 50 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों के उन लोगों पर ध्यान केंद्रित है, जो औपचारिक शिक्षा तक पहुँचने या पूरा करने का अवसर चूक गये हों।
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इस योजना में, केंद्र एक सुविधा और संसाधन प्रदाता के रूप में कार्य करता है। स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर कार्यक्रम को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाता है। जम्मू और कश्मीर में यह योजना 2012 में शुरू की गयी थी। पंचायत स्तर पर, घाटी में विभिन्न गांवों से एक महिला और एक पुरुष उम्मीदवार को चुना गया था।
सिर्फ पढ़ाया ही नहीं, चुनाव और कौशल विकास के काम भी किये
कश्मीर में कर्मचारियों ने कहा कि लगभग सात वर्षों तक प्रति माह महज 2,000 रुपये में काम करने के अलावा उनसे व्यावसायिक शिक्षा, कौशल विकास के साथ ही विज्ञान और खेल जैसे काम भी कराये गये। पिछले कुछ वर्षों में, जान जैसे कर्मचारियों को चुनावों के दौरान काम करने जैसी विभिन्न जिम्मेदारियां भी सौंपी गयीं।
पिछले सात सालों से ये कर्मचारी जम्मू-कश्मीर सरकार से अपनी नौकरी नियमित करने का अनुरोध कर रहे हैं। हालांकि, वे कहते हैं, उनकी मांग पूरी नहीं हुई है। उनका शोषण किया गया है।
5000 से अधिक प्रेरकों को अचानक दी गयी बंदी की जानकारी
यास्मीना यह जलालत झेलने वाली अकेली महिला नहीं हैं। साक्षर भारत मिशन (SBM) की लगभग एक दर्जन कर्मचारियों ने जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा थी, कहा कि 5,000 से अधिक कर्मचारियों को अचानक बताया गया था कि यह योजना बन्द हो गयी है। उनके कुछ पुरुष सहयोगी अभी सेल्समैन के रूप में काम कर रहे हैं, कुछ हॉकरों के रूप में काम कर रहे हैं और कुछ ने पोल्ट्री फार्म स्थापित किये हैं।
साक्षर भारत मिशन के कर्मचारियों को बनाया गया बलि का बकरा
पंपोर की एक अन्य महिला, सबरीना (38) ने कहा कि एसबीएम के कर्मचारियों को “बलि का बकरा” बनाया गया है। जब हम इस योजना के तहत चुने गये तो हमें उन अन्य नौकरियों को छोड़ने के लिए कहा गया, जो हम उस समय कर रहे थे। हममें से कुछ ने बेहतर नौकरियां छोड़ीं। आज हम खुद को असहाय पाते हैं।” उन्होंने कहा कि “कई बार, मेरी जेब में एक पैसा भी नहीं होता। मैंने इसके लिए अपना करियर बर्बाद कर लिया।”
अधिकांश कर्मचारियों ने पार की सरकारी नौकरी की आयु सीमा
सबरीना ने कहा कि फिलहाल, साक्षर भारत मिशन से जुड़े अधिकांश कर्मचारियों ने सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने की अधिकतम उम्र सीमा पार कर ली है। अब हम दूसरे सरकारी पदों के लिए भी आवेदन नहीं कर सकते।”
ससुराल वाले नहीं करते भरोसा, कहते हैं-झूठ बोलकर की शादी
इन वर्षों के दौरान शादी करने वाली कई महिला कर्मचारियों ने अपनी ससुराल में घरेलू हिंसा की व्यथित कर देने वाली कहानियां सुनायीं। ससुराल वालों का मानना है कि महिलाओं ने झूठा दावा किया कि उनके पास नौकरी की सुरक्षा है और वे कामकाजी महिलाएं हैं।
सबरीना ने बताया कि उनकी एक सहकर्मी का हाल ही में इसी कारण से तलाक हो गया। हालांकि, ये महिलाएं सामाजिक कलंक के कारण रिकॉर्ड पर बोलना नहीं चाहती हैं।
विरोध पर पिटाई की
कर्मचारियों ने राज्य का कहर टूटने के बारे में भी बात की, जब वे अपने साथ हो रहे लापरवाही भरे रवैये का विरोध कर रहे थे। कर्मचारियों ने कहा कि श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनकी पिटाई की।
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श्रीनगर में नौगाम के रियाज़ुल हक, उन कर्मचारियों में से एक हैं जिन्हें विरोध प्रदर्शन के दौरान पीटा गया था। उन्होंने कहा- “इतने वर्षों से हम अधिकार और न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी हमारी बात नहीं सुन रहा है। हमारी कुछ बहनें (महिला सहकर्मी) बदहाली में हैं और बुरी तरह से पीड़ित हैं। ”
2018 से न वेतन मिला न अनुबंध का विस्तार
इन शिक्षकों को 31 मार्च, 2018 से अनुबंध या वेतन का विस्तार नहीं दिया गया है। कर्मचारियों का दावा है कि अधिकारियों द्वारा उन्हें कोई नोटिस या पत्र नहीं दिया गया था कि योजना को बंद कर दिया गया है या उन्हें उनकी सेवाओं से विस्थापित कर दिया गया है।
राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा, अरुण कुमार मन्हास ने कहा कि साक्षर भारत मिशन दो साल पहले बंद हो गया था। इस योजना में लगे लोगों को सरकार द्वारा नियोजित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा “सरकार ने उन्हें प्रेरक के रूप में चुना था, न कि संविदा कर्मचारियों के रूप में। इस योजना के लिए सरकार के पास एक लक्ष्य था, जिसे पूरा किया गया। यह उन्हें स्थायी रूप से नियोजित करने की योजना नहीं थी।”
अशोक कुमार सिंह एक अनुभवी पत्रकार, लेखक, फोटोग्राफर हैं। कई दशकों तक हिन्दी के कई प्रतिष्ठित अखबारों में संवाद लेखन और सम्पादन का कार्य करने के बाद अब Freelance Content Writer के रूप में कार्य कर रहे हैं।
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